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Aspergillosis क्या है? क्या है इसके लक्षण और बचने के उपाय।

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कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने मरीजों में इस साल न जाने कितनी ही बीमारियों को जन्म दे दिया है। कोविड की चपेट में आने के बाद लोग रिकवरी के वक्त और भी दूसरी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। हाल के दिनों में ब्लैक फंगस के मामले काफी ज्यादा सुनने में आ रहे हैं। देशभर में अब तक इसके 11 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र और गुजरात हैं, जहां पर आए दिन ही लोग ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं।

ज्यादातर ब्लैक फंगस उन लोगों में देखा जा रहा है जो कोविड से रिकवर हुए हैं। इसके बाद वाइट फंगस और येलो फंगल इंफेक्शन के मामले भी आ चुके हैं। इसी बीच एक और नए संक्रमण के बारे में सूचना मिली है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब कुछ लोग पल्मोनरी एस्परगिलोसिस संक्रमण (Pulmonary aspergillosis infection) का शिकार हुए हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स साइनस पल्मोनरी एस्परगिलोसिस को एक दुर्लभ बता रहे हैं। जानिए क्या है पल्मोनरी एस्परगिलोसिस संक्रमण और कैसे हैं इसके सिम्टम्स।

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कहां फैला है पल्मोनरी एस्परगिलोसिस संक्रमण।

एस्पर्जिलोसिस एक ऐसा रोग है, जो संक्रमण, एलर्जिक प्रतिक्रिया या फंगस अधिक बढ़ने के कारण हो सकता है। यह आमतौर पर एस्पर्जिलस नामक फंगस के कारण होता है, जिससे संक्रमण या एलर्जी होने लगती है। यह फंगस आमतौर पर पत्तों व अन्य वनस्पतियों के सड़ने पर बनता है। फंगस के संपर्क में आने से ऐसा निश्चित नहीं है कि आपको एस्पर्जिलोसिस हो जाएगा।

लगभग हर व्यक्ति अपने जीवन में फंगस के संपर्क में आता ही है और अधिकतर लोग बीमार नहीं पड़ते हैं। जिन लोगों को फेफड़ों संबंधी रोग हैं या फिर जिन की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है उनको एस्पर्जिलोसिस होने का खतरा अधिक रहता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वडोदरा के एसएसजी अस्पताल में नए फंगल इंफेक्शन से आठ मरीज संक्रमित पाए गए हैं। जानकारी के मुताबिक, ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगल इंफेक्शन की तरह ये भी उन्हीं लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है जो कोविड से ठीक हो रहे हैं।

क्या है पल्मोनरी एस्परगिलोसिस संक्रमण

रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (Center for Disease Control and Prevention) के अनुसार, एस्परगिलोसिस (Aspergillosis) एस्परगिलस (Aspergillus) के कारण होने वाला एक संक्रमण है, जो एक सामान्य मोल्ड इंफेक्शन है। एस्परगिलोसिस एक प्रकार के मोल्ड (कवक) के कारण होने वाला संक्रमण है।

एस्परगिलोसिस संक्रमण से होने वाली बीमारियां आमतौर पर मरीज की श्वसन प्रणाली को प्रभावित करती हैं, लेकिन उनके लक्षण और गंभीरता अलग-अलग हो सकते हैं।

घर के अंदर-बाहर मौजूद रहता है संक्रमण।

बीमारियों को ट्रिगर करने वाला मोल्ड, एस्परगिलस, घर के अंदर और बाहर हर जगह मौजूद होता है। इस संक्रमण में अधिकांश लोगों के शरीर में एस्परगिलस बीजाणु सांस के ज़रिए प्रवेश कर जाते हैं, हालांकि, वे बीमार नहीं पड़ते लेकिन इसमें भी इम्यून सिस्टम का बड़ा रोल है। यह फंगस गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट (जठरांत्र पथ) को भी संक्रमित कर सकता है।

किन्हें है संक्रमण का खतरा।

हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, COVID-19 रोगियों में तमाम तरह के फंगल इंफेक्शन का मुख्य कारण स्टेरॉयड का प्रयोग करना और मरीज का कमजोर इम्यून सिस्टम है। साथ ही इसके पीछे ऑक्सीजन की आपूर्ति को हाइड्रेट करने के लिए साफ पानी इस्तेमाल न किया जाना भी एक कारण बताया जा रहा है।

जैसा कि आप जानते ही हैं COVID-19 संक्रमित मरीज के इलाज में स्टेरॉयड के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है जिसके चलते अब तमाम लोग ब्लैक फंगस का शिकार हो रहे हैं।

हेल्थ एक्सपर्ट्स को स्टेरॉयड के जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल के प्रति सावधानी बरतने को कह रहे हैं। पल्मोनरी एस्परगिलोसिस संक्रमण का खतरा भी कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली या फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों को ज्यादा है।

एस्पर्जिलोसिस के लक्षण – Aspergillosis Symptoms in Hindi

एस्पर्जिलोसिस के कई अलग-अलग प्रकार हैं, जो शरीर को भी अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते हैं। कई प्रकार के रोग व दवाएं हैं, जो एस्पर्जिलोसिस के विभिन्न प्रकारों के विकसित होने का खतरा बढ़ाती है। अलग-अलग प्रकार के एस्पर्जिलोसिस के लक्षण भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। एस्पर्जिलोसिस के प्रकार और उनके अनुसार होने वाले लक्षणों के बारे में नीचे बताया गया है –

एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्पर्जिलोसिस (एबीपीए)

एबीपीए में फंगस से एलर्जी संबंधी लक्षण होने लगते हैं, जैसे खांसी व घरघराहट होना आदि। इसके अलावा इसमें सांस लेने में दिक्कत व अस्वस्थ रहना आदि लक्षण देखे जा सकते हैं। फेफड़ों से संबंधी रोगों से ग्रस्त मरीजों को एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी रोग होने का अधिक खतरा होता है।

इनवेसिव एस्पर्जिलोसिस

यह आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने के कारण होता है। इनवेसिव एस्पर्जिलोसिस फेफड़ों को प्रभावित करता है और गुर्दों या मस्तिष्क में भी फैल सकता है। यह आमतौर पर उन लोगों को होता है, जिनको पहले ही स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है इसलिए उनके लक्षणों का पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इनवेसिव एस्पर्जिलोसिस के लक्षणों में निम्न शामिल हो सकते हैं –

खांसी (कभी-कभी खांसी में बलगम के साथ रक्त आना)

छाती में दर्द होना

सांस फूलना

बुखार

साथ ही फेफड़ों में हुआ संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल जाता है, जिनके अनुसार अन्य कई लक्षण पैदा हो सकते हैं।

एस्पर्जिलोमा

यदि आपको टीबी या फेफड़ों संबंधी कोई अन्य रोग है, तो फंगस के संपर्क में आने से आपके शरीर में फंगस बढ़ने लग जाता है। इस रोग को फंगस बॉल भी कहा जाता है, इसमें लगातार खांसी रहना, सांस लेने में तकलीफ या सांस फूलने जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। कुछ गंभीर मामलों में खांसी के साथ खून भी देखा जा सकता है।

इन सबके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जो एस्पर्जिलोसिस के साथ देखे जा सकते हैं –

छाती और हड्डियों में दर्द होना

देखने संबंधी समस्याएं

पेशाब में रक्त आना

पेशाब कम आना

सिरदर्द होना

ठंड महसूस होना

सांस लेने में तकलीफ होना

त्वचा में घाव होना

शरीर में कफ बनना

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एस्पर्जिलोसिस के कारण – Aspergillosis Causes in Hindi

एस्पर्जिलस ऐसा मोल्ड है, जिसके संपर्क में आने से बचना लगभग असंभव है। यह सड़ी हुई पत्तियों, पौधों और पेड़ों आदि में पाया जाता है।

स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के रोजाना एस्पर्जिलस मोल्ड के संपर्क में आना कोई समस्या पैदा नहीं करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब एस्पर्जिलस मोल्ड सांस के साथ अंदर जाते हैं, तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाएं उन्हें नष्ट कर देती हैं। लेकिन जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है, जैसे बीमार या प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने वाली दवाएं खाने वाले लोग आदि उनके शरीर में प्रतिरक्षी कोशिकाएं कम होती हैं। ऐसी स्थिति में एस्पर्जिलस मोल्ड को शरीर में अधिक देर तक रुकने का समय मिल पाता है और वह अंदर फेफड़ों में संक्रमण फैला देता है। यहां तक कि कुछ गंभीर मामलों में तो यह फेफड़ों के बाद शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगता है।

हालांकि, एस्पर्जिलोसिस ऐसा संक्रमण है, जो संक्रमित व्यक्ति से एक स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैल पाता है।

एस्पर्जिलोसिस होने का खतरा समस्त शारीरिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। साथ में इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप कितनी अधिक बार मोल्ड के संपर्क में आते हैं। सामान्य तौर पर कुछ कारक हैं, जो आपको एस्पर्जिलोसिस होने का खतरा बढ़ाते हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं –

कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली ।

जो लोग प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने वाली दवाएं लेते हैं या फिर जिनको डायबिटीज या एड्स जैसी बीमारियां हैं, उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।

सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी।

जिन लोगों की पहले कभी कीमोथेरेपी हो चुकी है, अंग प्रत्यारोपण हुआ है या फिर उन्हें ब्लड कैंसर है तो उनके शरीर में सफेद रक्त कोशिकाओं की कमी हो सकती है और एस्पर्जिलोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है।

लंग कैविटी ।

जिन लोगों के फेफड़ों में वायु के लिए रिक्त स्थान बन गए हैं, उनको भी एस्पर्जिलोसिस होने का खतरा हो सकता है।

अस्थमा और सिस्टिक फाइब्रोसिस ।

जिन लोगों को अस्थमा या सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उन्हें भी मोल्ड से संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।

एस्पर्जिलोसिस का परीक्षण – Diagnosis of Aspergillosis in Hindi

परीक्षण के दौरान डॉक्टर मरीज से उसके लक्षणों के बारे में पूछते हैं और साथ ही साथ आपके स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकारी लेते हैं। इनवेसिव एस्पर्जिलोसिस की जांच करने के लिए आमतौर पर बायोप्सी प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है, जिसमें लंग के ऊतकों से सैंपल लेकर उसकी जांच की जाती है। साथ ही आपके डॉक्टर एक उपकरण को आपके मुंह के अंदर से डालते हैं, जिससे सैंपल के रूप में द्रव निकाला जाता है, जिस पर फंगल इन्फेक्शन का पता लगाने के लिए कुछ परीक्षण किए जाते हैं।

इसके अलावा कुछ अन्य टेस्ट भी किए जाते हैं, जिनकी मदद से एस्पर्जिलोसिस संक्रमण की पुष्टि की जा सकती है, इनमें निम्न परीक्षण शामिल हैं –

छाती का एक्स रे

फेफड़ों का सीटी स्कैन

स्पूटम स्टेन और कल्चर

स्पूटम स्टेन और कल्चर की मदद से ब्रोंकाई में मौजूद बलगम का पता लगाया जाता है।

एस्पर्जिलोसिस का इलाज – Aspergillosis Treatment in Hindi

रोग के प्रकार के अनुसार उसका इलाज भी अलग-अलग तरीके से किया जाता है। हालांकि, कुछ स्थितियों में इसका इलाज करने की जरूरत नहीं होती है, इस दौरान बस मरीज की स्थिति को निगरानी में रखा जाता है। यदि एस्पर्जिलोसिस अधिक गंभीर नहीं है, तो ऐसे में न तो इलाज की जरूरत पड़ती है और दवाएं ठीक से काम भी नहीं कर पाती हैं। एस्पर्जिलोमा में किसी प्रकार के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, उसकी जांच छाती के एक्स रे के द्वारा की जाती है। यदि स्थिति गंभीर होती है, तो एंटीफंगल दवाएं दी जाती हैं। कुछ ही गंभीर मामलों में सर्जरी की आश्यकता पड़ती है। एस्पर्जिलोसिस के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं व सर्जरी आदि के बारे में नीचे बताया गया है।

ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स ।

एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्पर्जिलोसिस का इलाज करने के पीछे की मुख्य वजह अस्थमा और सिस्टिक फाइब्रोसिस को बदतर होने से रोकना होता है। ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाएं इसके लिए सबसे उत्तम विकल्प माना जाता है। एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्पर्जिलोसिस का इलाज करने के लिए खुद एंटीफंगल दवाएं काम नहीं कर पाती हैं। लेकिन उन्हें कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाओं के साथ दिया जाता है, ताकि स्टेरॉयड की खुराक को कम किया जा सके और फेफड़ों के कार्यों में सुधार किया जा सके।

एंटीफंगल दवाएं ।

इनवेसिव एस्पर्जिलोसिस के इलाज के लिए एंटीफंगल दवाओं को एक मानक उपचार माना गया है। इनमें सबसे अधिक प्रभावी वेरीकोनाजॉल दवाएं हैं, जो सबसे नई दवा है। यदि यह दवा काम न कर पाए तो एम्फोटेरिसिन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

सर्जरी ।

कई बार एंटीफंगल दवाएं एस्पर्जिलोमा में बनी फंगस की गांठों को ठीक से हटा नहीं पाती है, जिसमें सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। यदि एस्पर्जिलोमा के कारण फेफड़ों में रक्तस्राव हुआ है, तो सर्जरी सबसे प्रमुख इलाज प्रक्रिया हो सकती है।

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