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Dingko Singh कौन थे? Dingko Singh biography हिंदी में।

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BANGKOK : Dingko Singh of India shows his gold medal to photographers during the awarding ceremony for the 54kg class boxing final in the 13th Asian Games on Thursday. Singh defeated Timur Tulyakov of Uzbekistan. AP/PTI

एशियाई खेल 1998 में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले मुक्केबाज डिंग्को सिंह का गुरुवार को निधन हो गया, वे करीब 42 साल के थे. डिंग्को सिंह पिछले लंबे अर्से से यकृत के कैंसर से पीड़ित थे और पिछले दिनों कोविड 19 से भी संक्रमित हो गए थे. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतने के लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मनित किया गया था. इसके साथ ही मुक्केबाजी में उनके योगदान के लिए साल 2013 में पद्म श्री भी मिला था. डिंग्को सिंह ने नौसेना में भी काम किया था और बाद में वे कोच भी रहे. कई बड़ी हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिंग्को सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्विट किया और लिखा कि डिंग्को सिंह एक खेल सुपरस्टार थे. वे एक शानदार मुक्केबाज थे, जिन्होंने कई अवार्ड और पुरस्कार हासिल किए. पीएम मोदी ने लिखा है कि डिंग्को सिंह ने मुक्केबाज को काफी लोकप्रिय बनाया. उनके निधन से मैं दुखी हूं. आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा है कि डिंग्को सिंह के निधन से परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदना है.

डिंगको सिंह का जीवन परिचय।

भारत के आज तक के सर्वश्रेष्ठ बॉक्सरों में डिंको सिंह का नाम है । उनका जन्म मणिपुर के दूरदराज गांव में हुआ था और पालन-पोषण एक अनाथालय में हुआ । डिंको सिंह ने सफलता पाने के लिए जी-जान लगा दी ताकि भारत के चैंपियन बॉक्सर बन सकें । उनका पूरा नाम नगांगो डिंको सिंह है ।

‘विशेष खेल क्षेत्र’ स्कीम के अन्तर्गत डिंको सिंह को भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा सहायता मिली और जब वह चर्चा में आए तो मात्र 11 वर्ष के थे । उन्होंने इतनी छोटी उम्र में 1989 में अंबाला में राष्ट्रीय बॉक्सिंग का सब-जूनियर खिताब जीत लिया ।

डिंको सिंह ने अपनी पहली बड़ी अन्तरराष्ट्रीय सफलता तब हासिल की, जब उन्होंने 1997 में बैंकाक (थाईलैंड) में ‘किंग्ज कप’ जीत लिया । उस समय उन्हें सर्वश्रेष्ठ बॉक्सर घोषित किया गया था । इसके एक वर्ष पश्चात् डिंको सिंह ने अपनी दूसरी सफलता भी बैंकाक में ही प्राप्त की ।

बैंकाक उनके लिए भाग्यशाली साबित हुआ । उन्होंने 54 किलो वर्ग में विश्व के नम्बर दो खिलाड़ी टिमूर तोल्याकोव (उज्बेकिस्तान के खिलाड़ी) को हरा कर बॉक्सिंग का 1998 का एशियाड स्वर्ण पदक जीत लिया । उनके लिए यह सफलता और भी अधिक महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि उन्होंने कुछ ही माह पूर्व भार वर्ग 51 किलो से बदल कर 54 किलो वर्ग में कर लिया था । यहाँ सेमीफाइनल में उनका मुकाबला विश्व के नंबर दो खिलाड़ी थाईलैंड के वांगप्रेट्‌स सोन्टाया से हुआ था जिसमें दर्शक अपने देश के खिलाड़ी को हारता देखकर भड़क उठे थे ।

उपलब्धियां

बैंकॉक में 1997 में किंग्स कप में जीता। 1998 के बैंकॉक एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। गान्गिम डिंग्को सिंह, जिन्हें आमतौर पर डिंग्को सिंह के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय मुक्केबाज हैं और देश में पैदा होने वाले अब तक के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में उनका नाम लिया जाता है।

1998 के बैंकाक एशियाई खेलों की मुक्केबाजी प्रतियोगिता में एक स्वर्ण पदक जीतने के कारण उनकी पहचान कायम हुई।

डिंको सिंह भारत के सर्वश्रेष्ठ बॉक्सरों में से एक हैं |

उन्होंने 1997 में ‘किंग्ज कप’ जीता था |

उन्होंने 1998 में बैंकाक (थाईलैंड) में हुए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था |

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प्रारंभिक जीवन

उनका जन्म 1 जनवरी 1979 को मणिपुर के एक दूरदराज स्थित गांव के एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। डिंग्को को अपने जीवन की शुरुआत से ही अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा और उनका पालन-पोषण एक अनाथालय में किया गया।

राष्ट्रीय मुक्केबाजी

भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा शुरू की गयी विशेष क्षेत्र खेल योजना के प्रशिक्षकों ने डिंग्को की छिपी प्रतिभाओं को पहचाना और मेजर ओ.पी. भाटिया की विशेषज्ञ निगरानी के तहत उन्हें प्रशिक्षित किया गया; मेजर भाटिया बाद में भारतीय खेल प्राधिकरण की टीम शाखा के कार्यकारी निदेशक बने थे। डिंग्को की प्रतिभा, प्रयास और प्रशिक्षण ने रंग दिखाना शुरु किया और महज 10 वर्ष की आयु में उन्होंने 1989 में अम्बाला में आयोजित जूनियर राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में जीत हासिल की।

इस उपलब्धि के कारण चयनकर्ताओं और प्रशिक्षकों का ध्यान उनपर गया, जिन्होंने उसे भारत के एक होनहार मुक्केबाजी स्टार के रूप में देखना शुरु कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी

अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी के क्षेत्र में उन्होंने वर्ष 1997 में अपना पहला कदम रखा और 1997 में बैंकॉक, थाईलैंड में आयोजित किंग्स कप में जीत हासिल की। टूर्नामेंट जीतने के अलावा, डिंग्को सिंह को प्रतियोगिता का सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज भी घोषित किया गया।

स्वर्ण पदक तक का सफर

स्वर्ण पदक के अपने सफर के दौरान डिंग्को ने सेमी फाइनल में थाईलैंड के उत्कृष्ट मुक्केबाज वोंग प्राजेस सोंटाया को पराजित कर एक बड़ा कारनामा किया। वोंग उस समय विश्व के तीसरे नंबर के मुक्केबाज थे और डिंग्को की जीत ने सबको अचंभित कर दिया, पूरा देश अब उनसे चमत्कार की उम्मीद करने लगा.

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