मुकुल रॉय ( Mukul Roy) कौन है? क्या रही उनके BJP छोड़ने की वज़ह?

मुकुल रॉय ने भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर शुक्रवार को ‘घर वापसी’ करते हुए टीएमसी का दामन थाम लिया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मौजूदगी में बेटे शुभ्रांशु रॉय के साथ टीएमसी में शामिल हो गए. साल 2017 के नवंबर में टीएमसी से बीजेपी में गए मुकुल रॉय का सिर्फ 4 साल में ही भगवा पार्टी से मोह भंग हो गया.
कौन हैं मुकुल राय?
मुकुल रॉय का जन्म 17 अप्रैल 1954 को पश्चिम बंगाल के कांचरापर (कोलकाता में ) में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय श्री जुगल नाथ रॉय है व उनकी माता का नाम स्वर्गीय श्रीमती रेखा रॉय है। वह एक हिन्दू बंगाली परिवार से आते है।
मुकुल रॉय का जीवन परिचय।
पूरा नाम (Full Name)- मुकुल रॉय
जन्म तिथि (Date of Birth)- 17 अप्रैल 1954
जन्म स्थान (Birthplace)- कांचरापारा (कोलकाता में)
पिता का नाम (Father’s name)- स्वर्गीय श्री जुगल नाथ रॉय
माता का नाम (Mother’s name)- स्वर्गीय श्रीमती रेखा रॉय
जाती (Caste)- हिन्दू बंगाली परिवार
मुकुल रॉय की शिक्षा | Education qualification of Mukul Roy
उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से BSc की हुई है। और उन्होंने 2006 में माधुरी कामराज यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में MA की डिग्री प्राप्त की हुई है।
मुकुल रॉय का राजनितिक जीवन | Political career of Mukul Roy
मुकुल रॉय ने राजनितिक में अपना कदम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) पार्टी से रखा। तब वह युवा कांग्रेस के नेता बने।
तृणमूल कांग्रेस (TMC) पार्टी के स्थापक सदस्य के नेताओं में मुकुल रॉय का भी नाम प्रथम सूचि में आता है। 2006 में मुकुल रॉय को पार्टी का सचिव भी बनाया गया था।
मुकुल रॉय 2006 में राजयसभा के सदस्य के रूप में बने और 2012 तक वह अपने पद पर बने रहे। जब UPA की दूसरी सरकार बनी तो मुकुल रॉय को जहाज़रानी मंत्रालय का कार्यभार सौपा गया। और उसके बाद वह रेल मंत्री भी बने।
मुकुल रॉय ने 25 सितम्बर 2017 को तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया। उसके कुछ घंटो के बाद ही TMC के किसी नेता ने यह बयान दिया की वह पहले से ही पार्टी से 6 वर्षो के लिए निष्काषित हो चुके है। उसके बाद उन्होंने राज्यसभा के संसद से भी 11 अक्टूबर 2017 को इस्तीफा दे दिया।
मुकुल रॉय ने 3 नवंबर 2017 को भारतीय जनता पार्टी (BJP) को ज्वाइन किया। और तब से वह बीजेपी के नेता है। और अभी वह बीजेपी के राष्ट्रीय उपसचिव है।
अब हाल ही में मुकुल राय ने बीजेपी का दामन छोड़ अपने पुराने घर चलें गए हैं।
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ये जानते हैं वो पांच कारण जिसकी वजह से मुकुल रॉय ने ये फैसला किया है.
आत्म सम्मान
मुकुल रॉय के लिए स्वाभिमान एक बड़ा मुद्दा रहा है. वह पहला ऐसा बड़ा चेहरा हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को छोड़ तृणमूल कांग्रेस को वापस ज्वाइन किया है. टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के सबसे विश्वसनीय और संगठनात्मक राजनीति के बड़े खिलाड़ी रहे मुकुल रॉय ने लगातार कहा कि बीजेपी में बहुत हताशा और घुटन रही है.
पार्टी की बैठकों में तरजीह ना देना
मुकुल रॉय ने ऐसा महसूस किया कि 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान उनसे मशविरा किया गया. बीजेपी को इस चुनाव में शानदार जीत मिली थी. लेकिन साल 2021 में ऐसा संभव नहीं हो पाया. उन्हें पार्टी की सभी बैठकों और चर्चा में शामिल नहीं किया गया और ना ही उनके सुझावों को माना गया. ये भी एक बड़ी वजह रही उनके पार्टी से बाहर कदम रखने की.
मुकुल रॉय को साइडलाइन करते हुए उन्हें कृष्णा नगर से विधायक के तौर पर चुनाव लड़ने के लिए कहा गया. ऐसा पार्टी की आंतरिक राजनीति के चलते किया गया. उनके पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के बावजूद राज्य में उन्हें कोई खास अहमियत नहीं देते हुए कोई अधिकार या फिर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में उन्हें कोई भूमिका नहीं दी गई.
शुभेंदु अधिकारी का बढ़ा कद
मुकुल रॉय वर्तमान में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और शुभेंदु अधिकारी से सीनियर थे. लेकिन शुभेंदु अधिकारी के बढ़ते कद की वजह से भी यह नाराजगी सामने आई. इसके अलावा देशभर के नेताओं की तरफ से आना और टीएमसी और ममता बनर्जी पर व्यक्तिगत हमलों का मुकुल रॉय ने विरोध किया था. उन्होंने लगातार कहा कि इससे हार हो सकती है और इसकी यह एक बड़ी वजह हो सकती है.
टीएमसी की दस्तक।
बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी जीत के बावजूद ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी पहले टीएमसी नेता थे जिन्होंने मुकुल रॉय की बीमार पत्नी को देखने के लिए अस्पताल गए थे. यहां तक कि उससे पहले बीजेपी का भी कोई नेता उनका हालचाल लेने वहां पर नहीं गया था.
भेजा जा सकता है राज्यसभा।
मुकुल रॉय ने कभी भी ममता बनर्जी के खिलाफ नहीं बोला. राजनीतिक तौर पर धुर-विरोधी होने के बावजूद उन्होंने शायद ही किसी बैठक या किसी राजनीतिक बयान में ममता के खिलाफ व्यक्तिगत तौर पर हमले किए हों. ऐसा माना जा रहा है कि मुकुल रॉय की दिनेश त्रिवेदी को छोड़ने की वजह से खाली हुई राज्यसभा सीट पर उन्हें संसद के उच्च सदन में भेजा जा सकता है.